Nidhi Joshi

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Adhure khwaab si ho gayi hun

आज वो अधूरे ख़्वाब सी हो गयी हूँ,

जो कभी अमरबेल की शाख से उतरे प्रेम सा मुक्कमल हुआ करती थी ।

फिर न जाने कब ढल गयी कि वक़्त का पता ही नही चला,
जो शायद वसंत आने पर खिल भी सकता था ?
पर नही खिला !

वो डूब गया कहीं पहाड़ों के पीछे छुपकर और मैं उसे निहारती ही रही
सिर्फ़ एक आस के खातिर खुद को 
तड़पाती ही रही,
वो वक़्त! 
वो आस!
शायद अब कभी नही आएगा मुझसे मिलने,
इसीलिए अब उसे भूलने की फिराक में हूँ,
दो कदम आज साथ चलते- चलते उन जानी राहों पर बे आवाज़ सी हूँ ।

चलो अब जाने देती हूँ,
अनजानी राहों से जोड़कर खुद को एक नई दिशा में मजबूत बनाऊँगी,
बस एक यही कोशिश को पूरा करना चाहती हूँ।

तुम साथ हो या न हो, अब इससे मुझे फर्क नही पड़ता,
क्योंकि अब में सिर्फ खुद में रहना चाहती हूँ, हां मैं अब सिर्फ खुद में रहना चाहती हूँ।

निधि जोशी

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5 Comments

Niraj Pandey

17-Oct-2021 03:57 PM

बहुत खूब

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बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ 👌👌

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Harshit Jain

16-Oct-2021 10:49 PM

बहुत सुंदर 👌 अपने मे रहो और खूब मस्त रहो

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